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Tuesday, November 26, 2019

राष्ट्रपति ने किया, संविधान दिवस समारोह का उद्घाटन

पसूका नदि 26 नवं 2019... पत्रसूचना कार्यालय की विज्ञप्ति के अनुसार  भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द का संविधान दिवस के उद्घाटन समारोह में सम्बोधन के सम्पादित बिन्दू
 
माननीय सांसद-गण,
1.    आप सबको, तथा देश और विदेश में वाले भारत के सभी लोगों कोभारत के संविधान की 70वीं वर्षगांठ की हार्दिक बधाई!
2.    ठीक 70 वर्ष पूर्वआज ही के दिनइसी केंद्रीय कक्ष में, संविधान सभा के सदस्यों के माध्यम सेहम भारत के लोगों ने संविधान को अंगीकृतअधि-नियमित और आत्मार्पित किया।
3.    सन 2015 में, बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष के मध्यभारत सरकार ने 26 नवंबर के दिन कोप्रति वर्ष‘संविधान दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया। यह हमारे संविधान के प्रमुख शिल्पी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने की दिशा में एक सराहनीय पहल है। आज प्रथम बारदोनों सदनों के सदस्यों की भागीदारी के साथहम सब, ‘संविधान दिवस को केंद्रीय कक्ष में, मना रहे हैं। इस ऐतिहासिक अवसर का साक्षी और प्रतिभागी होना हम सभी के लिए सौभाग्य की बात है।
4.    हमारे संविधान निर्माताओं ने अपने ज्ञान, विवेकदूरदर्शिता और परिश्रम द्वारा एक ऐसा कालजयी और जीवंत प्रपत्र तैयार किया, जिसमें हमारे आदर्शों और आकांक्षाओं के साथ-साथ हम सभी भारतवासियों का भविष्य भी संरक्षित है। भारत का संविधान विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र का आधार-ग्रंथ है। यह हमारे देश की लोकतान्त्रिक संरचना का सर्वोच्च कानून है जो निरंतर हम सबका मार्गदर्शन करता है। यह संविधान हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था का उद्गम भी है और आदर्श भी।   
5.    हम भारतवासियों में, सभी स्रोतों से मिलने वाले अच्छे विचारों का स्वागत करने के साथ-साथ अपनी भारतीयता को बनाए रखने की परंपरा रही है। हमारी यही सांस्कृतिक विशेषताहमारे संविधान के निर्माण में भी झलकती है। हमने विश्व के कई संविधानों में उपलब्धउत्तम व्यवस्थाओं को अपनाया है। साथ हीहजारों वर्षों से चले आ रहे हमारे जीवन मूल्यों और स्वतन्त्रता संग्राम के आदर्शों ने भी हमारे संविधान पर अपनी छाप छोड़ी है। हमारा संविधान, भारत के लोगों के लिएभारत के लोगों द्वारा निर्मित भारत के लोगों का संविधान है। यह एक राष्ट्रीय प्रपत्र है जिसके विभिन्न सूत्र, भारत की प्राचीन सभाओं व समितियोंलिच्छवि तथा अन्य गणराज्यों और बौद्ध संघों की लोकतान्त्रिक प्रणालियों में भी पाए जाते हैं।
6.    असाधारण सूझबूझ से युक्त डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान सभा ने विभिन्न विचारधाराओं के संतुलन व समन्वय का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की अध्यक्षता में, संविधान सभा की प्रारूप समिति नेकुल 141 बैठकों में, असाधारण विवेकसत्यनिष्ठा, साहस और परिश्रम से, संविधान को मूर्त रूप प्रदान किया। हमारे संविधान में भारतीय लोकतन्त्र का दिल धड़कता है। इस जीवंतता को बनाए रखने के लिएसंविधान निर्माताओं ने, भावी पीढ़ियों द्वारा, समयानुसार आवश्यक समझे जाने वाले संशोधनों के लिए भीप्रावधान रखे।
7.    आज भारतीय लोकतन्त्र का उदाहरण पूरे विश्व में दिया जाता है। इसी वर्ष हमारे देशवासियों ने 17वें लोकसभा चुनाव में भाग लेकर विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सम्पन्न किया है। इस चुनाव में 61 करोड़ से अधिक लोगों ने मतदान किया। मतदान में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के लगभग समान रही है। 17वीं लोकसभा में आज तक की सबसे बड़ी संख्या में, 78 महिला सांसदों का चुना जाना, हमारे लोकतन्त्र की गौरवपूर्ण उपलब्धि है। महिलाओं को शक्‍तियां प्रदान करने संबंधी स्थायी संसदीय समिति मेंआज शत-प्रतिशत सदस्यता महिलाओं की है। यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनैतिक परिवर्तन है जिसमें आने वाले कल की सवर्णिम चित्र झलकता है।
8.    70 वर्ष की अवधि में भारतीय संविधान ने जो उपयोगिता व सम्मान अर्जित किया है, उसके लिए सभी देशवासी बधाई के पात्र हैं। साथ हीकेंद्र व राज्य सरकार के तीनों अंग अर्थात विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सराहना के पात्र हैं। संघ और राज्यों के तालमेल को आगे बढ़ाते हुए, ‘सहकारी संघवाद अर्थात को-ऑपरेटिव फेडरलिज़्म तक की हमारी यह यात्रा संविधान की गतिशीलता का उदाहरण है।
9.    25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में अपना अंतिम भाषण देते हुए डॉक्टर आंबेडकर ने कहा था कि संविधान की सफलता भारत की जनता और राजनीतिक दलों के आचरण पर निर्भर करेगी। भय, प्रलोभन, राग-द्वेष, पक्षपात और भेदभाव से मुक्त रहकर, शुद्ध अन्तःकरण के साथ कार्य करने की भावना को हमारे महान संविधान निर्माताओं ने अपने जीवन में पूरी निष्ठा व सत्यनिष्ठा से अपनाया था। उनमें यह विश्वास अवश्य रहा होगा कि उनकी भावी पीढ़ियां, अर्थात हम सभी देशवासी भी, उन्हीं की भाँति, इन जीवन-मूल्यों को, उतनी ही सहजता और निष्ठा से अपनाएंगे। आज इस पर हम सबको मिलकर आत्म-चिंतन करने की आवश्यता है।
माननीय सदस्य-गण
10.  डॉक्टर आंबेडकर ने संविधान सभा के अपने एक भाषण में संवैधानिक नैतिकता अर्थात Constitutional Morality के महत्व को रेखांकित करते हुए इस बात पर बल दिया था कि संविधान को सर्वोपरि सम्मान देना तथा वैचारिक मतभेदों से ऊपर उठकरसंविधान-सम्मत प्रक्रियाओं का पालन करना, ‘संवैधानिक नैतिकता का सार-तत्व है। सरकार के तीनों अंगोंसंवैधानिक पदों को सुशोभित करने वाले सभी व्यक्तियोंसभ्य समाज के सदस्यों तथा सभी सामान्य नागरिकों द्वारा संवैधानिक नैतिकता का पालन किया जाना अपेक्षित है।
11.  हमारे संविधान के अनुसारप्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह संविधान के आदर्शों और संस्थाओं का आदर करे; स्वतंत्रता की लड़ाई के आदर्शों को दिल में संजोए रखे और उनका पालन करे; ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध हैं; हमारी संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे। इनके अतिरिक्तसंविधान में नागरिकों के अन्य कर्तव्यों का भी उल्लेख किया गया है।
12.  कर्तव्य और अधिकार के विषय में महात्मा गांधी ने कहा था कि“अधिकारों की उत्पत्ति का सच्चा स्रोत कर्तव्यों का पालन है। यदि हम सब अपने कर्तव्यों का पालन करें, तो अधिकारों को अधिक ढूंढने की आवश्यता नहीं रहेगी। किन्तु, यदि हम कर्तव्यों को पूरा किए बिना अधिकारों के पीछे दौड़े, तो वह मृग-मरीचिका के पीछे पड़ने जैसा ही व्यर्थ सिद्ध होगा।
13.  हमारी संसद ने मूल कर्तव्यों के प्रावधानों को संविधान में शामिल करके यह स्पष्ट किया है कि नागरिकों कोअपने अधिकारों के बारे में सचेत रहने के साथ-साथ, अपने कर्तव्यों के प्रति भी सचेत रहना है। मूल कर्तव्य नागरिकों को उनकी नैतिक दायित्व का आभास भी कराते हैं। हमारे संविधान की प्रस्तावनामूल अधिकारोंनिदेशक तत्त्वों और मूल कर्तव्यों में संविधान की अंतरात्मा को देखा जा सकता है।
14.  अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हमारे संविधान मेंअभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का मूल अधिकार भी है और सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखने तथा हिंसा से दूर रहने का कर्तव्य भी। अतः ‘अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता’ का गलत अर्थ लगाकरयदि कोई व्यक्तिकिसी सार्वजनिक संपत्ति को क्षति पहुंचाने जा रहा हैतो उसे ऐसे हिंसात्मक व अराजकता-पूर्ण काम से रोकने वाले व्यक्तिसच्चे नागरिक कहलाएंगे। आवश्यता इस बात की है कि हम सब, अपने कर्तव्यों को निभाकर, ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करें, जहां अधिकारों का प्रभावी संरक्षण हो सके।
15.  मानववाद की भावना का विकास करना भी नागरिकों का एक मूल कर्तव्य है। सबके प्रति संवेदनशील होकर सेवा करना इस कर्तव्य में शामिल है। मैं गुजरात की श्रीमती मुक्ताबेन डगली का उल्लेख करना चाहूंगा, जिनको इसी वर्ष, राष्ट्रपति-भवन में‘पद्मश्री’ से सम्मानित करने का मुझे सुअवसर मिला। बचपन में ही अपनी आँखों की प्रकाश खो देने के बाद भी, उन्होंने अपना जीवन दूसरों के कल्याण में समर्पित किया। उन्होंने अनेक दृष्टि-बाधित बेटियों के जीवन में प्रकाश फैलाया है। अपनी संस्था के माध्यम से वे भारत के अनेक राज्यों की नेत्रहीन महिलाओं के जीवन में आशा की किरण फैला रही हैं। ऐसे नागरिक, सही अर्थों में, हमारे संविधान के आदर्शों को यथार्थ रूप देते हैं। वे राष्ट्र-निर्माता कहलाने के पात्र हैं।
16.  आप सभी सांसदों ने, विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखने तथा भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखने की शपथ ली है। आप सबकी भाँति, राष्ट्रपति के रूप में, मैंने भी, अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षणसंरक्षण और प्रतिरक्षण करने तथा भारत की जनता की सेवा और कल्याण में जुटे रहने की शपथ ली है। हम सबको अपनी शपथ व प्रतिज्ञान को निरंतर ध्यान में रखने की आवश्यकता है।
17.  भारत के नागरिक और मतदाता, सभी अपने जन-प्रतिनिधियों से यह अपेक्षा रखते हैं कि उनके कल्याण से जुड़े मुद्दों का समाधान, उनके प्रतिनिधि-गण अवश्य करेंगे। अधिकांश लोग अपने सांसदों से कभी मिल भी नहीं पाते हैं। परंतु वे सभी, आप सबको, अपनी आशाओं और आकांक्षाओं का संरक्षक मानते हैं। इस आस्था और विश्वास का सम्मान करते हुए, जन-सेवा में जुटे रहनाहम सभी की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। लोकतंत्र के इस पावन मंदिर में आकर जन-सेवा का अवसर मिलना बड़े सौभाग्य की बात होती है।
18.  संविधान द्वारा हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया गया  सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य और आदर्श है - सभी नागरिकों के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय तथा प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त कराना। संविधान निर्माताओं द्वारा सुनिश्चित किए गए समान अवसर के बल पर ही, आज मुझेराष्ट्रपति के रूप में, संसद की इस ऐतिहासिक बैठक को संबोधित करने का अवसर मिला है।
19.  हमारे संविधान में समावेशी समाज के निर्माण का आदर्श भी है और इसके लिए समुचित प्रावधानों की व्यवस्था भी। आजसंविधान-संशोधन जैसे शांतिपूर्ण माध्यम के द्वारा क्रांतिकारी परिवर्तन की व्यवस्था देने वाले संविधान निर्माताओं के प्रति हृदय से आभार व्यक्त करने का दिन है। गत कुछ वर्षों मेंसमावेशी विकास के हित में किए गए, संवैधानिक संशोधनों को पारित करने के लिएआप सभी सांसद बधाई के पात्र हैं।
20.  हमारे देश मेंहर प्रकार की परिस्थिति का सामना करने के लिएसंविधान-सम्मत मार्ग उपलब्ध हैं। इसलिएहम जो भी कार्य करें, उसके पहले यह अवश्य सोचें कि क्या हमारा कार्य संवैधानिक मर्यादागरिमा व नैतिकता के अनुरूप हैमुझे विश्वास है कि इस कसौटी को ध्यान में रखकरअपने संवैधानिक आदर्शों को प्राप्त करते हुएहम सबभारत को विश्व के आदर्श लोकतन्त्र के रूप में सम्मानित स्थान दिलाएंगे। आइयेआज यह संकल्प लें कि ‘हम भारत के लोग’ अपने संविधान के आदर्शों को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास-रत रहेंगे और करोड़ों देशवासियों के स्वप्नों को साकार करेंगे। 
धन्यवाद
जय हिन्द!

Monday, November 25, 2019

राज्‍यपाल सम्‍मेलन समापन पर मोदी उवाच

पसूका नदि. 24 नवं. 2019
राज्‍यपालों का 50 वां सम्‍मेलन आज राष्‍ट्रपति भवन में जनजातीय कल्‍याण और जलकृषिउच्‍च शिक्षा एवं जीवन की सुगमता पर बल दिए जाने के साथ संपन्‍न हो गया।
राज्‍यपालों के पांच समूहों ने इन विषयों पर अपनी रपट सौंपी और ऐसे बिन्‍दुओं की पहचान तथा उनपर गहन विचार विमर्श किया, जिन के संबंध में राज्‍यपाल एक मध्‍यस्‍थ की भूमिका निभा सकते हैं। सम्‍मेलन में जनजातीय कल्‍याण के विषय पर गहरी रूची दिखाई गई और बताया गया कि जनजातीय कल्‍याण की नीतियां स्‍थानीय आवश्य़ताओं के अनुरूप बनाई जानी चाहिएं।
 प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्मेलन के 50 वें संस्करण के सफल समापन के लिए उपस्थित लोगों को बधाई देते हुए इस बात पर बल दिया कि भविष्य में समय के साथ विकसित होते हुए सम्मेलन के संस्‍थागत रूप को राष्ट्र के विकास और जनसामान्य की आवश्य़ताओं को पूरा करने पर अपना ध्‍यान केन्द्रित करना चाहिए। उन्‍होंने मूल्यवान सुझावों के साथ आने के लिए प्रतिभागियों की प्रशंसा करते हुए,  राज्यपालों से, पहले नागरिक के रूप में, राज्य स्तर पर चर्चाओं को सक्षम बनाने का आग्रह किया ताकि उनकी स्थानीय परिस्थितियों की आवश्य़ताओं से जुड़ी सोच को पूरी क्षमता के साथ आगे बढ़ाया जा सके।
जनजातीय क्षेत्रों के विकास के संबंध में, प्रधानमंत्री ने प्रौद्योगिकी के उचित उपयोग और खेलों और युवाओं के विकास के लिए प्रगतिशील योजनाओं को अपनाने का आग्रह किया। प्रधान मंत्री ने 112 आकांक्षी जिलों, विशेष रूप से देश के जनजातीय क्षेत्रों में पड़ने वाले ऐसे जिलों की विकास की आवश्य़ताओं को पूरा करने के लिए, लक्षित हेकर काम करने को भी कहा। उन्‍होंने यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा कि ऐसे जिलों का विकास राज्‍यों और देश के औसत विकास से तेज हो।   
प्रधानमंत्री ने कहा कि सम्‍मेलन में जल जीवन मिशन पर चर्चा स्थानीय आवश्य़ताओं के अनुरूप जल संरक्षण और जल प्रबंधन तकनीकों की सरकार की प्राथमिकताओं को दर्शाती है। विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के रूप में राज्‍यपालों की भूमिका का उल्लेख करते हुए उन्‍होंने उनसे युवाओं और छात्रों के बीच जल संरक्षण का अच्‍छा अभ्यास विकसित करने का अनुरोध किया। उन्‍होंने राज्‍यपालों से पुष्करम जैसे जल से जुड़े पारंपरिक त्‍यौहारों के संदेश को भी प्रचारित करने में सहयोग की अपील की।   
नई शिक्षा नीति और उच्च शिक्षा क्षेत्र के संबंध में राज्‍यपालों की प्रमुख भूमिका पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वे विश्‍वविद्यालयों में ऐसी उच्‍च गुणवत्‍ता वाली शिक्षा में निवेश सुनिश्चित कर सकते हैं जो कम लागत वाले प्रभावी नवाचारों तथा प्रौद्येागिकी के उपयोग को बढ़ावा दे सकती है और हैकथॉन जैसे मंच का उपयोग करते हुए युवाओं में श्रीगणेश, संस्‍कृति को बढ़ावा देने के साथ उनके लिए कार्य के अवसर पर भी पैदा कर सकती है।
आम लोगों के जीवन को सुगम बनाने का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके लिए सरकारी संस्‍थाओं को एक ओर बाघितव्यवस्था और कई सारे नियम कानूनों के बीच संतुलन बनाना होगा और दूसरी ओर स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसे मूलभूत क्षेत्रों से संबंधित प्राथमिक आवश्य़ताओं उचित दरों पर उपलब्‍ध कराना भी सुनिश्चित करना होगा।
कृषि के संबंध में प्रधानमंत्री ने सामूहिक दृष्टिकोण का पालन करते हुए एक ऐसी कृषि अर्थव्यवस्था के विकास पर ध्यान केंद्रित करने पर बल दिया, जिसमें समाधान की स्थान हो। उन्‍होंने राज्‍यपालों से अनुरोध किया कि वे कृषि विश्‍वविद्यालयों की व्‍यवहारिक परियोजनाओं के माध्‍यम से अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर कृषि के क्षेत्र में श्रेष्ठ प्रचलनों को अपनाने में सहायता कर सकते हैं।
सम्‍मेलन के समापन सत्र को राष्ट्रपतिउपराष्ट्रपति और गृह मंत्री ने भी संबोधित किया। 
उत्तिष्ठत अर्जुन, उत्तिष्ठत जाग्रत ! 
देश की जड़ों से जुड़ें युगदर्पण के संग।
नकारात्मक मीडिया के भ्रम के जाल को तोड़, 
सकारात्मक ज्ञान का प्रकाश फैलाये।